Hindi Poetry

जी चाहता है

कोरोना काल में घर बैठे बैठे बहुत थक गया हूं,
बहुत हो गया, दिल ही दिल में सोचता रहता हूं।

अब स्वच्छंद रूप से बागों में, बगीचों में जाऊं
क्रिज़ेंथमम, पेटूनिया और वियोला की सुगंध पाऊं,
मंद मंद वायु के झोंकों से चित्त को आह्लादित कर पाऊं
चिड़ियों की चहचाहट ऑर मोरों के नाच में खो जाऊं
बज़ारों में गली कूचों में यूं ही निर्उद्देश्य घूमता जाऊं,
या फिर नदी किनारे बैठ कर लहरों को गिन आऊं।

खंडहरों, स्मारकों, पुराने किलों के खम्भों में खो जाऊं,
पुरानी राजा रानियों की कहानियाँ को सुनता जाऊं,
जंगलों के बीच अनजानी राहों पर चलता जाऊँ,
पेड़ों के बीच से छनती हुई धुप को निहारता जाऊँ,
पतझड़ के गिरे पत्तों पर छप-छप कर कूदता जाऊँ
पक्षियों की चहचहाहट से दिल को रिझाता जाऊं ।।

मैंने कब कहा

मैंने कब कहा कि मेरी बन जाओ
बस मुझ से अपनी नज़रें न चुराओ
क्या इतना सा भी नहीं हो सकता

मैं ने कब कहा कि मेर पास बैठ जाओ
बस मेरे पास से लहरा के गुज़र जाओ
क्या इतनी ख्वाहिश भी नहीं रख सकता

मैंने कब कहा कि मुझ से बातें किया करो
बस अपना खूबसूरत चेहरा दिखलाया करो
क्या इतनी गुज़ारिश भी नहीं कर सकता

मैं ने कब कहा कि मेरे पहलू में बैठ जाओ
बस कुछ मीठी खुशबू फैला के गुज़र जाओ
क्या इतनी सी फरियाद भी नहीं कर सकता

मैं ने कब कहा कि मुझे प्यार से देखा करो
बस मेरे सामने मुस्कुराकर के निकला करो
क्या इतनी सी भी पेशकश नहीं कर सकता

सैनिक की पत्नी का चन्द्रमा को आह्वान

ओ निशाकर, मेरे सुरों की
मधुर प्रेम-मय वर्षा कर दो
मेरे सुदूर प्रियतम, पति पर
जो युद्ध-व्यस्त हैं सीमा पर

उनके पथ पर है अन्धकार
उस को प्रकाशमान कर दो
उनके विरह-संतप्त मन को
युद्ध हेतु पूर्ण प्रेरित कर दो

उन को मेरा सन्देश दे दो
मैं विरहग्नि से शोक विव्हल हूँ
पर वीर योद्धा की पत्नी हूं
तथा उन की विजय की इच्छुक हूँ

उन के पथ पे हों जो भी अवरोध
वे उन सब का का उन्मूलन कर दें
उनको पूर्ण पराक्रम, साहस दो
रणभूमि में शत्रु को ध्वस्त कर दो

उन को अभेद्य रक्षा कवच दे दो
कोई क्षति न पहुंचे ऐसा वर दो
अग्रसर होके शत्रुसंहार करते जाएं
विजय का बिगुल-नाद करते जाएं

उनके सफल प्रत्यागमण से
आह्लादका विसरण होगा,
मस्तक गर्व से ऊँचा हो जायेगा
ह्रदय प्रेम से विह्वल हो उठेगा

मेरे सखा: मेरे श्वास

जिस क्षण मेरा जन्म हुआ
मेरा प्रथम क्रंदन हुआ
मैं ने सोचा यह कैसा जीवन है
आरम्भ जिसका ऐसा अप्रिय है II

इतने में मारुत-देव ने
प्राण-वायु भर के दिया मंत्र फूंक
मत चिंतित हो, इस रुदन-क्रिया से
मैं देता हूँ दो सखा तुम्हें II

यह नए सखा श्वास-उच्छवास
जीवन भार तुम्हारा साथ निभायेंगे
घडी भर को भी दूर न जाएंगे
जीवन को संचालित करते जाएंगे II

तब से यह निरंतर मेरे साथी हैं
मेरे जीवन के अभिन्न अंग हैं
यह ही मेरे जीवन के संबल हैं
इनसे ही मेरे हृदय की गति चलती है II

इनसे ही मेरे बुद्धि के प्रकोष्ठ जीवित है
इनसे ही मेरे रुधिर का शोधन होता है
इनसे ही मेरे श्वासकोष का संकुचन
और आकुंचन निरंतर होता रहता है II

जब जब मेरा हृदय चिन्तित होता है
या मस्तिष्क शिथिल होता है
मैं पूरक रेचक प्राणायाम
से करता हूँ इनका मैं आहवान

तब यह दोनोँ शीघ्र आकर
मेरे शरीर में स्फूर्ति भर देते हैं
मस्तिष्क को सक्रिय कर देते हैं
ह्रदय में उल्लास भर देते हैं

इन श्वासों से ही जीवन की माया है
यह ही मार्गदर्शन करते हैं चेतना के
विभिन्न चरणों का तथा यह ही बौद्धिक,
भावुक, भौतिक अवस्था निर्धारित करते हैं II

तुम तो ऐसी न थी

तुम तो ऐसी न थी
पहले मिला करते थे मुसल्सल
अब मेरा तुम्हारी गलियों से
गुज़र जाना भी तुम्हें गवारा नहीं

तुम तो ऐसी न थी
पहले मुलाक़ातें होती थीं रूबरू
अब मुझ से नज़रें मिलाना भी
तुम्हारे को मंज़ूर नहीं

तुम तो ऐसी न थी
पहले लम्बी गुफ़्तगू में खो जाते थे
अब मेरा पास में आके चाँद लफ़्ज़
बोलना भी तुम को पसंद नहीं

तुम तो ऐसी न थी
पहले मेरे खतों की मुन्तज़िर रहती थी
अब चिठ्ठी-रसां की घंटियों का
तुम को रहता कोई इंतज़ार नहीं

तुम तो ऐसी न थी
क़समें खाईं थीं उम्र-ए-तमाम वफ़ा की
पर तुम इस क़दर बेवफा निकलोगी
इस का था हम को बिलकुल इल्म नहीं